भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सपना / मेटिन जेन्गिज़ / मणि मोहन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हमने खरपतवार उखाड़ी
मिट्टी को उलटा-पलटा , साँस लेने की जगह बनाई

धरती को सींचा स्वर्ग के रंग से
जंगल की छाया का छिड़काव किया
ताकि बची रहे ताज़गी

ज़मीन साफ़ की
ताकि जड़ें और मजबूत बनी रहें

कितनी ख़ूबसूरती से मुस्कराता था अंजीर
जब उसे पानी दिया था

इसमे कविताएँ खिलेंगी गुलाबी लौंग फूल की तरह
इसकी मुस्कान ने बागवानी का विचार दिया ।

मूल अँग्रेज़ी से अनुवाद : मणि मोहन

लीजिए, अब यही कविता मूल तुर्की भाषा में पढ़िए
            Metin Cengiz
                    Düş
Yaban otlarını söktük birlikte
Toprağı ters yüz edip havalandırdık

Göğün rengiyle suladık toprağı
Ormanın gölgesini serptik üstüne serinlik diye

Güçlü köklerin etrafını açtık
Daha da güçlensinler diye

Öyle güzel bir gülüşü vardı ki
Sulandığı zaman inciri

O kızıl katmerli bir karanfil gibi şiir açtı
Ben gülüşünden öğrendim bahçıvanlığı