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सपना / ये लहरें घेर लेती हैं / मधु शर्मा
Kavita Kosh से
विवस्त्र ही चली आई
वह सपने में,
सपना चला जाता तो?
जल्दी में भूल गई दुनिया
और भूल गई देह,
उसने उड़ती चिड़िया को देखा
और देखा आसमान-
वह उड़ चली,
पीछे भेड़िए लगे थे
नोंच लेते बोटियाँ!
हैरान और डरी हुई
वह कहाँ तक भागती सपने के पंख लिए
कि तार थे काँटेदार
उसकी राह को रोके हुए
पर उड़ना उसकी देह में था
जब उसने चिड़िया को देखा काँटों-भर
तार से उड़ते हुए।