भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सपना / रंजना जायसवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरे पास बचा ही क्या है?
जो आप छीन लेंगे
हाँ,एक सपना है
जो आँखों में सँजो रखा है
क्या आँखों के साथ उसे भी निकाल
लेंगे?
लेकिन वह तो
मेरी रक्त की बूंद-बूंद में है
क्या रक्त के साथ उसे भी बहा देंगे
नहीं आप ऐसा नहीं कर पाएंगे
क्योंकि मैं अकेली नहीं हूँ
मेरे सपनों की हत्या के लिए
क्या आप सारी दुनिया को खत्म कर देंगे?