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सपने ऐसे भी हों / विष्णु नागर
Kavita Kosh से
मैं उसके सपनों में शायद ही कभी आया हूँ
मगर वह मेरे सपनों में कई बार आई है
हो सकता है कि वह किसी और के सपनों में आना चाहती हो
मगर वह न आने देता हो
इसलिए हताशा में वह मेरे सपनों में चली आती हो
सपने ऐसे भी हों जिनमें हम दोनों एक दूसरे से मिलें
फिर यथार्थ में दोनों कहीं मिले तो ऐसे शरमायें
जैसे कल ही कहीं चोरी छुपे- मिले थे
और आगे भी इरादा इस तरह मिलने जुलने का है
मगर इस बीच कोई समझ जाये कि दोनों के बीच कुछ है
वह मुस्कुराये और हम दोनों उसकी मुस्कुराहट के जवाब में ऐसे मुस्कुरायें
जैसे हमारी चोरी पकड़ी गयीं
तो भी क्या!