भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सपने और प्रेम-६ / रंजना जायसवाल
Kavita Kosh से
हजारों के बीच
अपने -आप को तलाशते जाना
कितना अजीब है
अजीब है कितना
पा लेने पर सोचना कि
जिसकी तलाश थी
वह मैं नहीं तुम थे
तुम