सपने तो सपने होते हैं लाखो हों चाहे इकलौता / संदीप ‘सरस’
सपने तो सपने होते हैं लाखो हों चाहे इकलौता,
जो सपना सच हो न सके उस सपने का मर जाना अच्छा।।
क्या चिड़ियो के उड़ जाने से आँगन नहीं मरा करता है?
क्या सपनों के मर जाने से जीवन नहीं मरा करता है?
उन कलियों की व्यथा टटोलो जिन्हें कंटकों ने ही छेड़ा,
क्या पुष्पों के मुरझाने से उपवन नहीं मरा करता है?
हाँ, कुछ पुष्प हुए उपवन में जिनमें रची सुवास नहीं है,
ऐसे पुष्पों का खिलने से पहले ही मुरझाना अच्छा।1।
मन की पीड़ा कहें अधर ना, यह भी कोई बात हुई है।
जीवन हो जीवन्त अगर ना, यह भी कोई बात हुई है।
टुकड़ा-टुकड़ा जीने को मैं जीना कैसे कह सकता हूँ,
थोडा जीना थोडा मरना यह भी कोई बात हुई है।
बूँद-बूँद से तृप्ति मिली तो प्यास बहुत शर्मिंदा होगी,
तो उस प्यासे का पनघट से प्यासा ही घर आना अच्छा।2।
शब्द शब्द से संवादों का गठबंधन अच्छा लगता है।
सच कहता हूँ कविताओं का अपनापन अच्छा लगताहै।
मेरे गीतों में जीवन का आँसू-आँसू अभिमन्त्रित है,
वेदों के मन्त्रों से ज़्यादा गीत मुझे सच्चा लगता है।
जीवन की अनुभूति हमारे गीतों में अभिव्यक्त न हो तो,
फिर जीवन के हर पन्ने का कोरा ही रह जाना अच्छा।3।