भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सपने में जगना / मनमोहन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

किसी और शहर में

एक रोज़ रात ढाई बजे

माँ ने

एक अजनबी स्त्री के वेश में आकर

गंजे होते अपने अधेड़ बेटे को

सपने में जगाया


’भूखी हूँ’ यह

पूरे तीस बरस बाद बताया