भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सपने / अरविन्द कुमार खेड़े
Kavita Kosh से
दुर्दिनों में काटे
रतजगों से उपजा है यह दर्शन
कि कभी तो वो सुबह आएगी
जब करूँगा
सूर्य का स्वागत
अर्घ्य दूँगा सूर्य को
उस दिन
अपने जमीर को गिरवी रख
तुम्हारी अघायी आँखों से लूँगा
कुछ सपने उधार
बो दूँगा अपनी उनींदी पलकों में ।