भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सपने / आभा पूर्वे

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सपने जो कल तक
मैंने बुने थे
वह आज तक
मेरे अपने
न हो सके

आज जब
मैंने सपने बुनने
छोड़ दिए हैं
कल तक के वे सपने
मेरी मुट्ठी में
आ गए हैं ।