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सपने / त्रिलोक सिंह ठकुरेला
Kavita Kosh से
जब सोती हूँ मम्मी के संग,
मुझे रोज आते हैं सपने।
करती बात चाँद तारों से,
परीलोक ले जाते सपने॥
इन्द्रधनुष पर सरपट दौड़ूँ
बादल को बांहो में भर के।
उड़न खटोला में उड़ घूँमूँ,
सखियों के संग बातें करके॥
परी मुस्कराकर कहती हैं -
नयी नयी हर रोज कहानी।
सिंहासन पर पास बिठाती,
मुझको परीलोक की रानी॥
किन्तु जाग जाती हूँ झटपट
सुन मम्मी - स्वर कानों अपने।
कितने मनमोहक लगते हैं
जगने पर भी प्यारे सपने॥