भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सपने / बीना रानी गुप्ता
Kavita Kosh से
खुली आँखों से
सपने देखना आसान नहीं होता
कलम में स्याही न हो
कोरा कागज न हो
लिखे को पढ़ना आसान नहीं होता..
खाली पेट
खुले आसमान में सोना
आसान नहीं होता
धुंधली स्लेट पर
चाक से अक्षर-अक्षर लिखना
आसान नहीं होता
काँधे पे थैला लटकाए
कूड़े से रोटी लाना
आसान नहीं होता..
धुँध से धुँधलायी सड़कों पर
रास्ता ढूँढना आसान नहीं होता
सर्द सुबह जगना
प्लेटफार्म पर
इधर-उधर भटकते हुए
चाय-चाय चिल्लाना
आसान नहीं होता..
सपनों के फूलों से
झोली भरना
मुरझाने से बचाना
आसान नही होता।