न डायरी लिखता हूँ आजकल
न पत्र मित्रों को
लिखने से डरता हूँ
कहने की फ़ुर्सत कहाँ ?
उखड़ी-उखड़ी आती है नींद
रात-भर ख़ुद से बतियाती हुई
सपनों में दूसरों से बतियाता हूँ ख़ूब
जिसको चाहे लतियाता हूँ ख़ूब
अनचाहे कभी-कभी पिट जाता हूँ
किसी बड़े बातूनी के हाथों
अनलिखी डायरियाँ
अनलिखे पत्र
हमारे सपने-
वे बातें हैं
जो हम किसी से नहीं कर पाते...
रचनाकाल : 1999, नई दिल्ली