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सपनों का अजायबघर / कुमार कृष्ण

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क्या तुमने सोचा है कभी तकिये के बारे में
नहीं, छोटी चीज़ों के बारे में हम नहीं सोचते
हम नहीं सोचते छोटे लोगों के बारे में
उनकी छोटी-छोटी खुशियों के बारे में
तकिये के बारे में सोचने का मतलब
मनुष्य के सपनों के बारे में सोचना है
तकिया है नींद का कुल देवता
सुख की खान
तकिया चाहे छोटा हो या बड़ा
वह नहीं जानता-
छोटे-बड़े का, ऊँच-नीच का अन्तर
वह जानता है-
दिल और दिमाग़ की दूरियों को कम करना
वह जानता है-
सपनों के, योजनाओं के, कल्पनाओं के बीज बोना
तकिया है फैंटेसी का एनसाइक्लोपीडिया
सपनों का अजायबघर
जो नहीं खा पाते भर पेट भात
उनको भी ले जाता है तकिया-
सपनों की दुनिया में
वहाँ बहती हैं दूध की नदियाँ
खड़े रहते हैं रोटियों के अनगिनत पहाड़
पारदर्शी पानी के झरने
वहाँ कोई नहीं माँगता भीख
कोई नहीं भागता एक दूसरे के पीछे हथियार लेकर
न कोई डरता है न डराता है
उस दुनिया से लौटकर
वह बनाना चाहता है वैसी ही दुनिया
इस धरती पर।