भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सपनों का घर गिर जायेगा अन्देशा है / ओम प्रकाश नदीम
Kavita Kosh से
सपनों का घर गिर जाएगा अन्देशा है
वादे से वो फिर जाएगा अन्देशा है
मेरी तौबा के सूरज पर उसका रुख़
बादल बन कर घिर जाएगा अन्देशा है
ख़ुद्दारी ज़ख़्मी लेकर लौटा है लेकिन
लत फिर लत है फिर जाएगा अन्देशा है
घर तो बन जाएगा लेकिन जाने क्या क्या
दीवारोँ में घिर जाएगा अन्देशा है
ऊँचाई पर जाने का जो ढंग है उसका
रस्ते में ही गिर जाएगा अन्देशा है