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सपनों का नीड़ / नचिकेता
Kavita Kosh से
आना
मेरी यादों में
हर पल तुम आना
आना जैसे
सावन में हरियाली आती
अंजुराई आँखों के अन्दर
लाली आती
पाकर
नए बीज में
अंकुर सा अंखुआना
आना जैसे
लहरों में थिरकन आती है
फूलों की पंखुड़ियों में
बू लहराती है
इच्छाओं को
मिल जाता जिस
तरह बहाना
आना जैसे
साँसों में उष्मा आती है
एक छुअन से दस-दो देह
सिहर जाती है
आ मेरे
मन में सपनों के
नीड़ बनाना
आना जैसे
आलस में आती अंगड़ाई
तकिये के खोलों पर उगती
नई कढ़ाई
गालों पर
छलके श्रम-सीकर में
दिख जाना