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सपनों की अंगड़ाई / जलज कुमार अनुपम
Kavita Kosh से
अदहन जैसे खौलते हुए
जुनून की तपिश लिए
कई बार चाहा
मेरे अधरो से तेरा नाम नहीं निकले
हर बार दिल
ओस की फुहारें खोज लाता है
और दिमाग
पत्थर पर दूब जमा बैठता है
यही से फिर शुरु होती है
उफनते सपनों की अंगड़ाई
और तब मैं हार जाता हूँ ।