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सपनों की इबारत / संतोष श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
तुम्हारा लिखा प्रत्येक शब्द
मुझे बेचैनी और तड़प के
आलम में डूबा जाता है
मेरे सपनों की इबारतें
इन शब्दों के
रास्तों से ही तो होकर
गुजरती हैं
तुम इसे
यूटोपिया मात्र कहते हो
तुम मानते हो
कि यथार्थ की दुनिया में
इन सपनों की
कोई प्रासंगिकता नहीं
फिर पाश ने क्यों लिखा
"खतरनाक होता है
हमारे सपनों का मर जाना"
क्यों लिखा गांधी ने
"मेरे सपनों का भारत"
जयशंकर प्रसाद का तो
सारा लेखन
सपनों का संकल्प
और प्रतिबिंब है
मेरी चेतना में
इस तड़प को
महसूस तो करो
मेरे सपनों की इबारत में
ढूँढ लो मुझे
खुद को भी वहीं पाओगे
निश्चय ही