सपनों की कभी हार नहीं होती / रश्मि प्रभा
दो बुलबुले आँखों के मुहाने से
बादलों की तरह
ख़्वाबों की दुनिया बनाते हैं ....
ये ख़्वाबों की दुनिया
कितनी अच्छी लगती है !
न कहीं जाना
ना कोई खर्च
सबकुछ पास उतर आता है
बादल , पहाड़, चाँद , सितारे
आकाश, पाताल , धरती , नदी
बस ख्वाहिशों के धागे खोलते जाओ
सपनों की पतंग ऊपर ऊपर बहुत ऊपर
..... मजाल है कोई काटे ...
कैची भी तुम्हारे हाथ !
चाहो और खिलखिलाओ
टप्प से आंसू बहा लो... हल्के हो जाओ
सोच लो- उसकी हथेली सामने
परिधान भी एक से एक - मनचाहे
खूबसूरत से खूबसूरत हसीन वादियाँ
ओह ! वक़्त कम पड़ जाता है ...
गीत आँखों में थिरकते हैं
पैरों में मचलते हैं
सब अपना बस अपना लगता है !
सोओ जागो ... सपना साथ साथ चलता है
प्यार ख़्वाबों में ... बहुत चटकीला होता है
महकता है बहकता है
सावन के गीत गाता है
खुद ही विछोह पैदा कर बिरहा गाता है
तानसेन, बैजू बावरा सबकी हार
एक मटकी के सहारे
कई नदिया पार .....
अपना कैनवस अपनी आकृति अपने रंग
कुछ भी अनछुआ नहीं होता
.... सपनों की कभी हार नहीं होती
अपनी जीत मुट्ठी में होती है !