सपनों की दुनिया-5 / देवेन्द्र कुमार देवेश

सपने कभी सच नहीं होते
कि कभी-कभी सच भी हो जाते हैं
पर सबके सब सपने
शायद ही कभी होते हैं सच
और सपने / जो हो जाते हैं सच
होते हैं क्यों / सच से भी भयावह?
अथवा झूठ से भी सुन्दर?
कि चाहे जैसे भी हों
झूठ या सच / मोहक अथवा डरावने
सपनों की चाहत बनी रहेगी हमेशा।

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