भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सपनों की भाव-भूमि को तैयार कर गई / जहीर कुरैशी
Kavita Kosh से
सपनों की भाव भूमि को तौयार कर गई
ख़ुशबू हवा से मिलके, चमत्कार कर गई
मैं खोजने लगा हूँ उसे सौ करोड़ में
जो मेरी कामनाओं का विस्तार कर गई
शायद सड़क पे इसलिए उतरा नहीं विपक्ष
जो काम था विपक्ष का सरकार कर गई
संदेह,मन के मध्य उठाने लगे थे सिर
सच्चाई, उन शकों को निराधार कर गई
कुछ इस तरह से दुनिया में आया उदारवाद
घर तक दुकान आई तो बाज़ार कर गई
मेरे अकेले बाजू न कर पाए काम वो
जो बाजुओं से मिलते ही पतवार कर गई
नफरत की राजनीति से पैदा हुई कटार
सद्भावना की देवी का संहार कर गई