बरसता रहा पानी रात भर
खेत लबालब, गलियाँ गीली
मेंढ़क की टर्र-टर्र ।
दुखना सपने देखता रहा भोर तक
बेटी पढ़ने जाएगी शहर
साहब बनेगी
नाम रोशन करेगी घर और गाँव का ।
सुबह नाँगर और बैला ले
खेत जोतने चला है दुखना
बैलों के संग गोल-गोल घूमना
जैसे सपनों की भूल भुलैया ।
हरी छरहरी धान की बालियाँ
सुग्गा चक्कर काटता खेतों में
उसे भी प्रतीक्षा है
धान के पकने का
धुकधुकाती है छाती
रूठ न जाए बरखा रानी
मनौती करता ग्राम देवता की ।
बुरे सपने का सच होना और भी बुरा होता है
लग जाती है धान में बाँकी
सूख जाती है दुधयाई बालियाँ
मेंढ़क तलाशता है पानी
छिप जाता है चट्टान के नीचे
या गहरे तालाब में ।
झरते रहे सपने
दुखना के रातभर
ओस से भीगे ।
टपक रहे हैं महुआ के
रस भरे फूल
सूखे खेत में टप-टप ।