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सपनों में वह नज़र हमे आते हैं आजकल / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
सपनो में वह नज़र नहीं आते हैं आजकल
यादों के जब भी दीप जलाते हैं आजकल
वो साथ थे तो मेरी खिजाँ भी बहार थी
गुलशन भी उनके बिन नहीं भाते हैं आजकल
यूँ तो किसी को कोई यहाँ पूछता नहीं
ग़ैरों से लोग रिश्ता निभाते हैं आजकल
गाते रहे छिपा के तराने वह प्यार के
नफरत को खूब खुल के दिखाते हैं आजकल
वो सर उठा के हैं गगन में थूकने लगे
कश्ती वह रेत में भी चलाते हैं आजकल