सप्तपुरी / जतरा चारू धाम / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’
1. अयोध्या -
अवध धाम जत परम पुरुष रामक अवतारे
जनिक सुयश-अवदात चरित धवलित संसारे
सरयु सलिल पावित, रघुकुल लालित शुचि धन्या
बौद्धिक जुझि नहि सकथि, अयोध्यापुरी अनन्या
रघु दिलीप अज दशरथक रथ-पथ शत गाथा लिखित
कुठित बैकुण्ठहुक रुचि दृग-पथ चित रहु अवतरित
2. मथुरा -
शूरशेन जनपद मुकुटक मणि मथुरा धाम
जतय अवतरित परम ब्रह्म लीलाहित लीलाधाम
अधर मुरलि, कर चक्र चंक्रमण, हाथ राखि रथ रासि
गोपी-उर चन्दन, रिपु-कन्दन ज्ञान - पन्थ उद्भासि
कंस भ्रंसि, कुरु-वंश ध्वंसि, मुनि मानस-हस, अनन्त
तनि पद-पù सù जत अंकित बसिअ मुक्ति हित अन्त
मधु रिपु मथि, रिपूसूदन सदन बनाओल रुचिर ललाम
पुनि मधुसूदन मधुपुर सजलनि मधुरा मथुरा नाम
3. माया -
माया पुरी उत्तरा खंडक सुविदित गंगा - द्वार
यज्ञमयी सुरगवी अथ च धर्मद्रवीक संसार
पुनि जुभि कहवे मही महामायाक तिरहुतिक द्वार
जतय सिराउर सँ सीता भगवती लेल अवतार
4. काशी -
भूतल रहितहुँ जे त्रिलोकसँ अधिक बढ़ल छथि
रहितहुँ जगतक शूल, त्रिशूलक उपर चढ़लि छथि
वरुणा - असिक संगमहुँ वारुणि रस न परसइछ
गंगा मरहु नगर गगाधर गरल न गरइछ
शीतल वाहिनि गंग पुनि अंगहु ज्योतिर्लिंगमय
विश्वनाथ बसबैछ बसि विश्व, बास काशीक जय
5. कांची -
दक्षिण सतत प्रदक्षिण करवे कांची कांचन धाम
संचित करवे पुण्य राशि, वंचित नहि जीबन याम
एक बिम्ब प्रतिबिम्बित दुइ वैष्णव शैवक आदर्श
हरिहरात्मिका अद्वैतक साक्षात्कार उत्कर्ष
भुक्ति - मुक्तिदा पुरी वैष्णवी शैवी भारत भूमि
देखल संगरो नगरो-डगरो, अनत न, जगती घूमि
6. उज्जयिनी -
इत विजिते जत नगर-पुरी, उत जयिनी लोक ललाम
उज्जयिनी, धन-जन विशाल, तेँ उचित विशाला नाम
महाकाल छथि वासी, हुनक उपासी कोना उपास
पड़ते? तेँ न अकाल-दुकालक पतो जतो जनवास
विक्रम विदित अनुक्रम एखनहुँ, मालव भूमि अनन्य
जन जनपदक अवन्ती, जन-धनवन्ती नगरी धन्य
7. पुरी-द्वारवती -
दूर सिन्धु सौवीर द्वार-पर द्वारकाक अछि सोर
जरासन्ध रोधित मथुरा तजि चुपहि बसल रन छोर
भारतवर्षक हर्ष-द्वार, जलपथ आक्रमणक पार
पीठ सांस्कृतिक संक्रमणक शंकर द्वारा उद्वार
सागर जल क्षालित दुआरि-घर प्लावित पुण्य प्रदेश
एखनहु माटि चढ़ायब माथे मुक्ति पुरी अवशेष
--- ---
सप्त पुरी लाक्षणिक पुनि पुरी दारवी पूर्वतन
जगन्नाथ - पद माथ जे नवथि न जनमथि जन भुवन