भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सफर जिन्दगी के / सुभाष चंद "रसिया"
Kavita Kosh से
सफर ज़िन्दगी के ई बाटे सुहाना।
बनाय दिहलु जान हमके दीवाना॥
घर से निकली त एकहि ऊ मोड़ बा।
देखी सुघराई तोहार कवनो ना जोड़ बा।
झाक के खिड़किया से करेलु बहाना॥
बनाय दिहलु जान हमके दीवाना॥
चलेलु डगरिया कमर बलखा के।
छुप जला चंदा अंगनवा में आके।
गली-गली भवरा सुनावे तराना॥
बनाय दिहलू जान हमके दीवाना॥
रहिया में आईत मिल जलु तड़के।
देखि-देखि तोहरा दिल मोरा धड़के।
मारेला ताना ई हमके जमाना॥
बनाय दिहलू जान हमके दीवाना॥
काटे ना कटेला तनहा ई रतिया।
हरदम याद आवे तोहरी सुरतिया।
जबसे भईल तोहरी गली आना जाना॥
बनाय दिहलु जान हमके दीवाना॥