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सफर में लड़की (2) / मदन गोपाल लढ़ा


रेलगाड़ी के अंदर एक दुनिया है-
कुछ जाने कुछ अनजाने लोग
बात-बेबात हँसी ठठ्ठा
कुछ उम्मीदें
कुछ आशंकाएँ।

एक दुनिया खिड़की के बाहर है
सरपट भागते पेड़
कल-कल बहती नहर
उन्मुक्त आकाश में उड़ते पाखी
फाटक खुलने का इंतजार करते लोग।

लड़की के अंदर भी
एक दुनिया है
जिसके कैनवास पर खिलता है
उसके ख्वाबों का इंद्रधनुष।

जानना चाहती है लड़की;
कौनसी गाड़ी पहुँचाती है
उस दुनिया तक।