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सफल हुआ जो वही सिकंदर / कैलाश झा 'किंकर'
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सफल हुआ जो वही सिकंदर।
खुशी जो अन्दर वही है बाहर॥
पनाह नदियों को कौन देता
अगर न होता बड़ा समंदर।
कली-कुसुम के सगे हैं काँटे
खड़े हिफाज़त में हैं जो तनकर।
उदास रातें हँसेगी फिर से
चढ़ेंगे ज्यो ही सजन नज़र पर।
बड़ा ही मुश्किल ये काम यारो
मगर न बैठेंगे आज थककर।
उछल के पारा गया है ऊपर
उमस है, गर्मी बहुत है किंकर।