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सफ़र को और कुछ दुश्वार करते / मदन मोहन दानिश
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सफ़र को और कुछ दुश्वार करते,
अभी मंज़िल को तुम इन्कार करते ।
ये क्या कि उम्र भर चारागरी की,
किसी को इश्क़ मे बीमार करते ।
तो एक दिन तुमसे ख़ुशबू आने लगती,
अगर फूलों का कारोबार करते ।
तमन्ना है ये दिल मे तेरी ख़ातिर,
किसी दिन हम भी दरया पार करते ।
तो फिर ऐसा हुआ कि रो पडे हम,
कहाँ तक ज़ुर्म का इक़रार करते ।
अगर बेजान होते सूखे पत्ते,
तो कैसे दश्त को होशियार करते ।