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सफ़र ये मेरा अजब इम्तिहान चाहता है / रईसुदीन रईस

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सफ़र ये मेरा अजब इम्तिहान चाहता है
बला के हब्स में भी बादबान चाहता है

वो मेरा दिल नहीं मेरी ज़बान चाहता है
मिरा अदू है मुझी से अमाँ चाहता है

हज़ार उस को वही रास्ते बुलाते हैं
क़दम क़दम वो नया आसमान चाहता है

अजीब बात है मुझे से मिरा ही आईना
मिरी शिनाख़्त का कोई निशान चाहता है

मैं ख़ुश हूँ आज कि मेरी अना का सूरज भी
मिरे ही जिस्म का अब साएबान चाहता है

मैं उस की बात की तरदीद कर तो दूँ लेकिन
मगर वो शख़्स तो मुझ से ज़बान चाहता है