भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सफ़र ये मेरा अजब इम्तिहान चाहता है / रईसुदीन रईस
Kavita Kosh से
सफ़र ये मेरा अजब इम्तिहान चाहता है
बला के हब्स में भी बादबान चाहता है
वो मेरा दिल नहीं मेरी ज़बान चाहता है
मिरा अदू है मुझी से अमाँ चाहता है
हज़ार उस को वही रास्ते बुलाते हैं
क़दम क़दम वो नया आसमान चाहता है
अजीब बात है मुझे से मिरा ही आईना
मिरी शिनाख़्त का कोई निशान चाहता है
मैं ख़ुश हूँ आज कि मेरी अना का सूरज भी
मिरे ही जिस्म का अब साएबान चाहता है
मैं उस की बात की तरदीद कर तो दूँ लेकिन
मगर वो शख़्स तो मुझ से ज़बान चाहता है