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सफ़र से लौटते वक्त / अमरजीत कौंके
Kavita Kosh से
सफ़र पर जाता हूँ
तो बहुत सलीके से रखता हूँ
कपड़े, टुथ ब्रश, पुस्तकें
जोर से करता हूँ
बैग बंद
लौटता हूँ
तो ठूँसता हूँ
बैग में कपड़े बेतरतीब
कुर्त्ता, पायजामा, तौलिया
मैला रुमाल, जुराबें
टूथ-ब्रश रह जाता
गुसलखाने में पड़ा
बेतरतीब चीजें लेकर
लौटता हूँ घर
जाते समय
मन में चाव होता
लौटते वक्त पछतावा।