भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सफ़र है धूप का इसमें क़याम थोड़ी है / अलका मिश्रा
Kavita Kosh से
सफ़र है धूप का इसमें क़याम थोड़ी है
बला है इश्क़, ये बच्चों का काम थोड़ी है।
किसी को वस्ल है भारी कोई फ़िराक़ में ख़ुश
दिलों के खेल में कोई निज़ाम थोड़ी है
अभी भी दिल में धड़कता है नाम उसका ही
अभी भी दिल से मुहब्बत तमाम थोड़ी है
जो अहल-ए-इश्क़ हैं मन्ज़िल का ग़म नहीं करते
ये ख़ास लोगों का रस्ता है आम थोड़ी है
बढ़ा जो दर्द तो काग़ज़ पे ख़ुद उतर आया
समझ के सोच के लिक्खा कलाम थोड़ी है
तुम्हारी याद जो आई तो आ गए मिलने
वगरना तुमसे हमें कोई काम थोड़ी है
हम अपने मन की करेंगे भला लगे के बुरा
हमारा दिल है तुम्हारा गुलाम थोड़ी है