भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सफ़र / जया जादवानी
Kavita Kosh से
सारी इच्छाएँ वैसे नहीं झरतीं
जैसे सूखे पत्ते
कुछ सूखे बीजों-सी
पैरों के नीचे आकर भी
फिर उसी ज़मीन पर
रच लेतीं रंग रूप आकार अपना
यूँ बार-बार जन्मने मरने के बीच
वे ढूँढ़ती हैं बेस्वाद
जीवन में स्वाद
यूँ वे बिना कहीं पहुँचे
अपने सफ़र में रहती हैं।