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सफ़ा-ओ-सिद्क़ का पौदा किसी ने जब लगाया था / ईश्वरदत्त अंजुम

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सफ़ा-ओ-सिद्क़ का पौदा किसी ने जब लगाया था
हवस से दूर उल्फ़त का दिया दिल में जलाया था।

जब आंखों से कोई आकर मिरे दिल में समाया था
मिरे हक़ में महब्बत का तराना उसने गाया था

खुशी के अश्क़ निकले थे हुई थी आंख भी रोशन
न भूलेगी वो साइत जब कोई दिल में समाया था

हमारे प्यार का पौदा तरो-ताज़ा रहे हर दम
हवाए-गर्म-ए-दुनिया से इसे हम ने बचाया था

न भूलेगा कभी मुझको खुशी का वो हसीं लम्हा
कि भाई बन के जब 'रहबर' मिरी दुनिया में आया था।