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सफ़ेद-काला / शंख घोष / जयश्री पुरवार
Kavita Kosh से
सड़क का वह खड़ूस बुड्ढा
जब आगे बढ़कर बोला — "मुझे चाहिए ।
नही देंगे ?
न देकर
किसे ठग रहे हैं, महोदय ?"
और उसके चारों ओर खड़े कुछ भद्र लोगों ने कहा —
"सावधान, हट जाइए,
यह आदमी ज़रूर पीकर आया है,
कुछ प्वाइण्ट चढ़ाकर आया है ..."
तभी मेरे सामने काँपते हुये खड़ा हो जाता है
वाशिंगटन का एक और बहुत बेदम बूढ़ा
फटे कपड़े थे सीने पर और ढेले खा रहा था जो
पर फिर भी उँगली उठाकर कह रहा था — "सुनो,
आई एम ब्लैक
ओ यस, आई एम ब्लैक
बट माई वाइफ़ इज व्हाइट !"
मूल बांग्ला से अनुवाद : जयश्री पुरवार