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सफ़ेद चाँद चमक रहा है / सिर्गेय येसेनिन / अनिल जनविजय
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सफ़ेद चाँद चमक रहा है,
बर्फ़ ढका है दुनिया का मैदान
और श्वेत कफ़न पहने
आसमान से झाँके है चन्द्रमा हैवान
श्वेत वस्त्र धारी जंगल में
सफ़ेद भोजवृक्ष खड़े रो रहे वन में
मृत्यु किसकी यह? कहीं ख़ुद ही तो
मैं नहीं पहुँचा शमशान?
4 / 5 अक्तूबर 1925
मूल रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय
लीजिए, अब यही कविता मूल रूसी भाषा में पढ़िए
Сергей Есенин
Снежная равнина, белая луна…
Снежная равнина, белая луна,
Саваном покрыта наша сторона.
И березы в белом плачут по лесам.
Кто погиб здесь? Умер? Уж не я ли сам?
4 / 5 октября 1925