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सफ़ेद झंडा / कुमार सुरेश
Kavita Kosh से
वह साधारण-सा
आदमी
सुबह से
सफेद झंडा
उठाए रखता है
सुबह पानी नहीं आता
बिना नहाए चला जाता है ऑफिस
चुपचाप पी जाता है
अफ़सर की डाँट
सिटी बस में कंडक्टर
कहता है- आगे खिसको
चुपचाप खिसक जाता है
पत्नी के ताने
सुनकर करता है
अनसुने
बच्चे जब माँगते हैं
नया खिलौना
नए कपड़े
तो दिला नहीं सकता
इसलिये नहीं दिलाता
पर इस मज़बूरी पर
भावुक नहीं होता
वही साधारण-सा आदमी
जो सुबह से
सफेद झंडा उठा रखता है
वही तो सबसे ज़्यादा
लड़ता है।