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सबकी आँखो का मर गया पानी / विजय वाते
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सबकी आँखो का मर गया पानी|
फ़िर भी आँसू से डर गया पानी|
धुप समझते थे, चांदनी समझे,
वक्त गुज़रा उतर गया पानी|
कोई नश्तर चला था पानी पर,
क़तरा-क़तरा बिखर गया पानी|
ज़लज़ले, आग, हादसे, आँसू,
अब तो सर से गुज़र गया पानी|
ये समय की रंगों में बहता है,
हड्डियाँ नर्म कर गया पानी|