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सबकी बोली है ज़लज़ले वाली / द्विजेन्द्र 'द्विज'
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सबकी बोली है ज़लज़ले वाली
क्या करें बात सिलसिले वाली
उनके नज़दीक जा के समझोगे
उनकी हर बात फ़ासिले वाली
अब न बातों में टाल तू इसको
बात कर एक फ़ैसले वाली
बात हँसते हुए कहें कैसे
यातनाओं के सिलसिले वाली
सीख बंदर को दे के घबराई
एक चिड़िया वो घौंसले वाली
कल वो अख़बार की बनी सुर्ख़ी
एक औरत थी हौसले वाली
वो अकेला ही बात करता था
जाने क्यों, रोज़ क़ाफ़िले वाली
फ़िक्र क़ायम रहा हज़ार बरस
‘द्विज’ की हस्ती थी बुलबुले वाली