भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सबकुछ अपने आप संभाला जाएगा / पंकज कर्ण
Kavita Kosh से
सबकुछ अपने आप संभाला जाएगा
अर्थप्रबंधन कब तक टाला जाएगा
पहले हर भूखे को उनके हक़ की दें
मेरे अंदर तब ही निवाला जाएगा
पहले उनको अपना तो होने दें फिर
आस्तीन में सांप भी पाला जाएगा
"सबको न्याय सभी को उनका हक़ देंगे"
वोट है, जुमला फिर से उछाला जाएगा
रूप बदल 'पंकज' बहेलिया आया है
जाल बिछेगा, दाना डाला जाएगा