सबको छोड़ तुम्हारे आगे आया रोता-गाता / प्रेम नारायण 'पंकिल'
सबको छोड़ तुम्हारे आगे आया रोता-गाता।
इस अनाथ-सुत की विनती अनसुनी करो मत-माता।।
पतित-पावनी सुना तुम्हारी चरण-शरण कल्याणी।
बिना तुम्हारी कृपा शांति-सुख पाता रच न प्राणी।
दुख संताप न उसे व्यापते चरण-शरण जो पता- ।।1।।
कह माता तमुमसी कृपामयी कहीं किसी ने देखा।
मेरे कर में अम्ब प्रेम की नई खींच दे रेखा।
माता तुम तो स्वयं विधाता की भी भाग-विधाता- ।।2।।
तुम शिव के सिर की शोभा हो पतित पावनी गंगा।
तेरे बल पर विभव बाँटता अवढ़र दानी नंगा।
अर्धांगिनी आप हैं इससे भोला जहर पचाता- ।।3।।
भूतनाथ हो गये भुवनपति भुवन भाँग की टाटी ।
उन्हें हुई गुणकारी तेरी पाणि-ग्रहण परिपाती।
अवढरदानी बने लुटाते हैं उधार का खाता- ।।4।।
खरदूषण त्रिसिरादि हते प्रभु थी सॅंग माँ बैदेही।
किन्तु वही था धनुष, वही थे बाण, राम थे वे ही।
रावण-रव में भालु-कीश से पड़ा जोड़ना नाता- ।।5।।
जिनके डर से स्वयं काल की भी घिग्घी बॅंधती थी
मर्यादा-पुरूषोत्तम के बल की भेरी बजती थी।
प्रिया-हीन भयभीत हो गये वे भय के भय दाता- ।।6।।
शरणागत-वत्सल माधव की महिमा अगम अगाधा।
बैठ कुंज में वे भी रटते राधा, राधा, राधा।
राधा बिना रहा आधा ही चोर कर दधि खाता- ।।7।।
भूलीं पटरानी पितु-माता परम भक्त थे जो भी।
परब्रह्मा लीला-पुरूषोत्तम राधा-पद-रज लोभी।
माँ, तेरे अंचल का मारूत उन्हें तृप्त कर जाता- ।।8।।
शेष-शारदा थाह न पाते धुनते रहते माथा।
जड़मति-‘पंकिल’ कैसे गाये माँ तेरी गुणगाथा।
बोल, जननि मय पिये बिना कैसे शिशु क्षुधित अघाता-।।9।।