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सबको बस इक पनाह चाहिये / गरिमा सक्सेना

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सबको बस इक पनाह चाहिये
अपनेपन की ही चाह चाहिये

जुड़ ही जाते हैं रिश्ते अपने-आप
चाहतों की निगाह चाहिये

हैं दरिन्दों की ख्वाहिशें यही
शहर उनको तबाह चाहिये

काम बिगड़े हुए सँवर सकें
आपकी वो सलाह चाहिये

मिल ही जाएँगी मंज़िलें ज़रूर
पहले मिलनी तो राह चाहिये