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सबको भाती है आजादी / शकुंतला कालरा

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जामुन के बड़े पेड़ पर,
पंछी मिलकर रहते।

तोता, मैना, चिड़िया, कोयल,
सुख-दु: ख अपना कहते।

आया वन में एक शिकारी,
ढूँढे पंछी न्यारे।

नीचे बैठे दो सुग्गे थे,
बोल बोलते प्यारे।

डरे शिकारी को जब देखा,
नहीं भागने पाए।

मन ही मन खुश हुआ शिकारी,
इनको फाँसा जाए।

खोज-खोज हल सुग्गे इसका,
मन ही मन घबराए।

कैसे प्राण बचाएँ सबका,
यही सोचते जाएँ।

बोल-बोल कर अपनी बोली,
सुग्गों ने समझाया।

भागो-भागो, झटपट भागो,
सब पर संकट आया।

फेंका जाल तभी दोनों पर,
दौड़ा-दौड़ा आया।

बंद किया पिंजरे में उनको,
फुला नहीं समाया।

चीं-चीं, मीं-मीं, कुहू-कुहू करते,
सबने शोर मचाया।

चोंच मारकर उसके सिर पर,
मिलकर ख़ूब सताया।

नहीं भागने पाया वह तो,
ऐसा घेरा डाला।

झटपट खोला पिंजरा उसने,
देखा प्यार निराला।

कलरव करते पक्षी सारे,
झूम ख़ुशी से गाएँ।

देख-देख कर प्यार अनोखा,
सुग्गे भी हरषाएँ।

आसमान पर उड़ते पक्षी,
गाते मौज मनाते।

सबको भाती है आजादी,
समझ क्यों नहीं पाते।