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सबद भंडार / कन्हैया लाल सेठिया
Kavita Kosh से
कयो मनैं
मा सुरसत
सूंपती बगत
आप रै
अखूट भन्डार री कूंची
कर भलांई अबै
उरळै हाथां खरच
पण मान ‘र
इण नै
ओपरो बापरयोड़ो धन
कोनी हुवै
म्हारै स्यूं फजूल खरची
मनैं तो लागै
हरेक सबद
हाथी रो पग
खरचूं बतो ही
जकै स्यूं
अरथीज ज्यावै
चिंतण !