सबद भाग (1) / कन्हैया लाल सेठिया
1.
धरती कागद हल कलम
बिरखा मसि रो नीर,
बाया आखर बीज जद
सबद उग्या गंभीर
2.
गरज सरै के भीड़ स्यूं
हाथ मिनख रो थाम,
चसै न दिवलौ लाय स्यूं
तूली आवै काम
3.
दोष दिखै जे और में
निज रो दोष पिछाण,
कद देख्यो कालूंस नै
भुवन दीपतो भाण !
4.
सुघड़ देह रो कुंभ है
पण इनस्यां रा बेज,
उरजा रो अमरित ढुलै
संजम पाण सहेज
5.
मिनख सळयो बणसी जणा
बणसी सळयो समाज,
बीज रोगलै रूंख रो
कोनी हुवै इलाज
6.
हूंती नहीं विजोग री
हिवडै में जे पीर,
बणतो काळीदास कुण
मीरा, दास कबीर !
7.
मत कांटां स्यूं राड़ कर
कर कांटां री बाड़,
बण कर सैण रूखाळसी
बैरी, गांव - गुवाड़
8.
फसल हुई गोडां सुदी
सागै बध्यो निवाण
अणचायां रै साथ स्यूं
सूखै लीलो धान
9.
पग में जद कांटो गडै
काढै बीं नै हाथ
न्यारा न्यारा धरम पण
संवेदण में साथ
10.
विष परतख अमरित कठै
मूढ थक्या टंटोळ,
ज्ञानि जाणै मरम नै
विष अमरित रो खोळ