सबद भाग (6) / कन्हैया लाल सेठिया
51.
मिली समद में छांट पण
अलघो आपो राख,
परतख एक अनेक लख
भरम दीठ रो नाख
52.
कांई करसी ताकड़ी
जद तुल ज्यासी दीठ,
साथ खगोल भागोल रै
दिखसी जको अदीठ
53.
तू गोरी गैली हुई
दरपण किण रो ीमत !
पूठ फेरतां ओ फिरै
आंख्यां देखी प्रीत
54.
बंध्यो नेह री डोर स्यूं
ओ आखो संसार,
बछियो देख्यां गाय रा
थण छोडै पयधार
55.
चावै भिदै अभैद तो
खैंच मांयनै प्राण,
छुटसी तीर, कबाण नै
थारै कानी ताण
56.
तपै भाण भू रो हुवै
आपै ही उपगार,
पूगै पाणी पांगळो
बण बादळ गिगनार
57.
संवत, जुग, महीना, बरस
बिरथ गिणै दिन रात,
खिण नै चेनै राख तू
आ लाखीणी बात
58.
गुण रा गाहक पून सा
कोनी लादै और,
सौरम बांटै पुसब री
फिर फिर आठों पौर
59.
भोळा कोनी तीस मिटै
मांड्यां बूक लिलाड़,
होठां सारै हाथ ल्या
पी, कर नीची नाड़
60.
जोत नही मैली हुवै
आ सूरज साख्यात,
घणी हवैली ऊजळी
ज्यूं ज्यूं घुळसी रात