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सबद / दुष्यन्त जोशी
Kavita Kosh से
म्हूं सोधूं
अैड़ा सबद
जिका
मिनख-मिनख रै
बिचाळै
बण्योड़ी भींत नै
रेड़'र
करदयै पद्दर
अर जगादयै
मिनख रै भीतर
मिनखपणौ।