भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सबद : अेक / राजेन्द्र शर्मा 'मुसाफिर'
Kavita Kosh से
सबद बणज्या
कैंसर जैड़ी गाँठ
बैठज्या काळजै मांय
कटार ज्यूं
करदै खून रिस्तां रौ
बण ज्यावै
दुरजोधन अर दुस्सासन।
द्रोपदी रौ चीरहरण
सीता नै बनवास
सबद ही रच्या
रगत रंग्या इतियास।