भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सबन के ऊपर ही ठाढ़ो रहिबे के जोग / भूषण
Kavita Kosh से
सबन के ऊपर ही ठाढ़ो रहिबे के जोग,
ताहि खरो कियो जाय जारन के नियरे .
जानि गैर मिसिल गुसीले गुसा धारि उर,
कीन्हों न सलाम, न बचन बोलर सियरे.
भूषण भनत महाबीर बलकन लाग्यौ,
सारी पात साही के उड़ाय गए जियरे .
तमक तें लाल मुख सिवा को निरखि भयो,
स्याम मुख नौरंग, सिपाह मुख पियरे.