भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सबब बग़ैर था हर जब्र क़ाबिले-इलज़ाम / आरज़ू लखनवी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सबब बग़ैर था हर जब्र क़ाबिले इल्ज़ाम।
बहाना ढूंढ लिया, देके अख्तियार मुझे॥

किया है आग लगाने को बन्द दरवाज़ा।
कि होंट सी के बनाया है राज़दार मुझे॥