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सबमें ही जिसका चलन है / अमरेन्द्र

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सबमें ही जिसका चलन है
वह समय का व्याकरण है

क्यों घोटाले ये गमन हैं
मुल्क अपना है वतन है

जिन्दगी द्वारे खड़ी है
मौत आँगन में मगन है

बहर मुतकारिब से पहले
क्यों नहीं कहते यगन है

एक मेरा दोस्त है जो
आस्तिन में गेहुँअन है

बेसुरे के राग को वह
लोभ में कहता यमन है

आदमी है इस सदी का
आवरण पर आवरण है

सच को सच अमरेन्द्र का ये
बोल जाना आदतन है।