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सबरी बुहारै डगरिया, हो राम, सबरी / करील जी
Kavita Kosh से
सबरी बुहारै डगरिया, हो राम, सबरी॥धु्रव॥
उमगि-उमगि नित डगरी बुहारै,
आजु मोरा अइहैं सँवरिया, हो राम.॥1॥
जनम जनम के प्यासे नैना,
छविरस पैहौं गगरिया, हो राम.॥2॥
सैंपी राम-पद प्रान-धरोहर,
होइहौं मगन बाबरिया, हो राम.॥3॥
बहुत दिवस बीते पद जोहत।
प्रभु बिनु सूनी नगरिया, हो राम.॥4॥
गुरु वचनन की एक आस मोहि,
जोहति प्रभु की डगरिया, हो राम.॥5॥
छबि रस-प्यास -करीलहू’ के उर,
कमल नयन धनुधरिया, हो राम.॥6॥